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DEHRADUN UTTRAKHAND

धामी के चुनाव हारने के बाद अब कौन होगा उत्तराखंड का मुख्यमंत्री,अगले दो दिन में तय हो सकता है नए मुख्यमंत्री का नाम

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देहरादून: प्रधानमंत्री मोदी का मैजिक फिर उत्तराखंड में चला। भाजपा ने सत्ता में अब तक चले आ रहे ‘बारी बारी भागीदारी’ के राजनीतिक मिथक को तो तोड़ दिया लेकिन 6579 वोट से खटीमा सीट से सीएम पुष्कर सिंह धामी की […]

देहरादून: प्रधानमंत्री मोदी का मैजिक फिर उत्तराखंड में चला। भाजपा ने सत्ता में अब तक चले आ रहे ‘बारी बारी भागीदारी’ के राजनीतिक मिथक को तो तोड़ दिया लेकिन 6579 वोट से खटीमा सीट से सीएम पुष्कर सिंह धामी की हार से सिटिंग सीएम की हार का मिथक तोड़ने में नाकाम रही। अब भाजपा की प्रचंड जीत के बावजूद अगला मुख्यमंत्री कौन होगा यह यक्ष प्रश्न खड़ा हो गया है।

भाजपा की जीत के साथ ही पार्टी कॉरिडोर्स में यह चर्चा तेज हो गई कि क्या हार के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिल पाएगा? हालाँकि हिमाचल प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में सीएम चेहरा बनाए गए पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल खुद चुनाव हार गए थे और लेकिन पार्टी को जीत मिली थी। इसके बाद धूमल को सीएम नहीं बनाया गया था। ऐसे में क्या धामी को चुनाव हार जाने के बाद भी मोदी-शाह मुख्यमंत्री की कुर्सी सौेप देंगे? चंपावत से जीते कैलाश गहतोड़ी ने अपनी सीट धामी के लिए छोड़ने की इच्छा जाहिर कर उपचुनाव के जरिए विधानसभा पहुँचने का रास्ता दिखाया है। संभव है इसी तरह कुछ और धामी समर्थक विधायक भी ऐसे बयान दे सकते हैं लेकिन क्या भाजपा नेतृत्व को यह आइडिया जमेगा?

वैसे धामी की हार के साथ ही सीएम रेस में कई नाम दौड़ने लगे हैं। अगर विधायकों में से ही नया मुख्यमंत्री चुनाव जाना होगा, जिसकी संभावना ज्यादा है, तो चौबट्टाखाल से जीते सतपाल महाराज और कड़े मुकाबले में श्रीनगर जीते डॉ धन सिंह रावत का रेस में सबसे आगे हैं। प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक भी रेस में हैं लेकिन अगर सांसदों में से किसी नेता को मौका मिलता है तो राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी, केन्द्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट और पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक जैसे नाम चर्चा में हैं।

गहतौड़ी की तर्ज पर डोईवाला से चुनाव जीते बृजभूषण गैरोला ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम बनाने की मांग करते खुद सीट छोड़ने की इच्छा जताई है। जाहिर है अगले एक दो दिनों में नए सीएम चेहरे को लेकर भाजपा आलाकमान कोई फैसला लेगा उससे पहले तमाम दावेदार अंदरखाने खूब जोर-आजमाइश करेंगे और हर वह दांव पेंच आज़माएँगे जिससे सूबे की सरकार का मुखिया बनने का मौका मिल सके।

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